श्याम बाबा की ऐलनाबाद के श्याम भक्तों पर असीम कृपा हुई और 1965 में श्याम बाबा के भक्तों ने श्री श्याम भजन मंडल के नाम से एक संस्था की स्थापना की। उस समय ऐलनाबाद में बाबा को मानने वाले केवल 8-10 परिवार ही थे। जिन्होंने हर एकादशी को ऐलनाबाद के श्याम भक्तों के घरों में बाबा की ज्योति जागाकर बाबा का प्रचार किया।

श्री श्याम बाबा की असीम कृपा ऐलनाबाद वासियों पर हुई और 1970 में श्री श्याम भजन मंडल को मंदिर निर्माण का आदेश श्री आलू सिंह जी महाराज के मुखारविंद से हुआ और 1970 में मंदिर निर्माण कार्य हेतु भूमि पूजन हुआ, जिसके बाद आम जनता के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ, जो कि 1974 में एक विशाल मंदिर स्वरूप में संपूर्ण हुआ।

10 फरवरी 1974 को जयपुर से बाबा श्याम की सांवली मूर्ति को भक्तों द्वारा ऐलनाबाद लाया गया। 11 फरवरी 1974 से विद्वान ब्राह्मणों द्वारा सप्त दिवसीय प्रण प्रतिष्ठा समारोह विधि विधान और मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न हुआ। जिसमें 16 फरवरी 1974 को ऐलनाबाद में बाबा श्याम नगर भ्रमण करने के बाद 17 फरवरी 1974 रविवार फाल्गुन बड़ी एकादशी को मंदिर के गर्भगृह में साक्षात विराजमान हुए।

धीरे-धीरे करके लोगों की मनोकामना बाबा के दरबार में पूरी होने लगी, जिससे बाबा के प्रति लोगों की आस्था और बढ़ने लगी। हर साल मंदिर के स्थापना दिवस के रूप में फाल्गुन बड़ी एकादशी व द्वादशी के दिन दो दिवसीय मेला भरने लगा। हर साल इस मेले में भारत के हर कोने से लोग अपनी मनोकामना लेकर आने लगे और बाबा उनकी मनोकामना पूर्ण करने लगे।

फाल्गुन बड़ी एकादशी 12 फरवरी 1999 वार शुक्रवार को मंदिर का स्थापना दिवस रजत जयन्ती महोत्सव के रूप में मनाया गया। जिसमें चार दिवसीय कार्यक्रम हुआ, जिसमें श्याम भक्तों ने एक नारा दिया “ऐलनाबाद है नगरी प्यारी, जहाँ बिराजे श्याम बिहारी” जो कि श्याम भक्तों में प्रसिद्ध हो गया और पूरा ऐलनाबाद इस नारे से गूंज उठा। ऐलनाबाद का बच्चा बच्चा श्याम मयि हो गया और यह रजत जयन्ती महोत्सव एक यादगार महोत्सव बन गया।

रजत जयन्ती महोत्सव के बाद यह मेला हर साल चार दिवसीय होने लगा। हर एकादशी द्वादशी को बाबा के दर्शन हेतु लोग दूर-दराज से हजारों की संख्या में आने लगे। बाबा के चमत्कारी प्रभाव को महसूस करके श्याम भक्तों ने ऐलनाबाद को एक धाम के रूप में देखा और एक नारा दिया “ऐलनाबाद एक धाम हो गया, जो भी आया प्रेम से, वो निहाल हो गया।”